Monday, April 25, 2011

मुहिम की मंजिल



97 घंटे के अनशन ने सत्ता की बागडोर संभालने वालों को सोचने पर मजबूर कर दिया। जंतर-मंतर पर जुटे लोगों में हर तबका नजर आया। अमीर-गरीब, युवा-बुजुर्ग, बेरोजगार-उद्ममी सभी एक साथ एक मंच पर मौजूद रहे। इसे लोगों के जहन में मौजूद संसदीय व्यवस्था की विश्वसनीयता पर सवाल का नतीजा कहें, या भ्रष्ट तंत्र के मकड़जाल में फंसे आम लोगों को सता रहा वजूद खोने का डर। उन्हें अन्ना में एक ऐसे किरदार की झलक दिख रही थी, जो देशभक्त हो,और गड़बड़ियों के खिलाफ आवाज बुलंद करने का माद्दा रखता हो। इस आंदोलन ने सरकार यानि सत्ता और जनता के बीच के संबंधों को परिभाषित कर दिया। जनता के हित के लिए सरकार है, ना कि सरकार के हित के लिए जनता। जन लोकपाल बिल का मसौदा तैयार करने के लिए सरकार और सोसायटी के नुमाइंदों की कमेटी बन गई। पहले मोर्चे पर आंदोलन कामयाब रहा। लेकिन इसके साथ ही बड़ा सवाल सामने है, अब आगे क्या होगा? मसौदे पर सहमति बन जाती है, तो क्या संसद के मानसून सत्र में बिल सदन में पारित हो जाएगा?
                      भ्रष्ट तंत्र पर नकेल कसने की पहल तो कामयाबी की राह पर है, लेकिन मंजिल तक का सफर तय करना मुश्किल भरा नजर आ रहा है। गौर करने वाली बात है, कि जिस संसद में इस लोकपाल बिल को पेश किया जाएगा। वहां 145 ऐसे सांसद मौजूद हैं, जो भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे हैं। वहीं उनके साथ जुड़े दूसरे सांसद भी मौजूद हैं, जो आरोपों की काली छाया से अब तक खुद को बचाने में कामयाब रहे हैं, लेकिन असलियत में उन्हें भी भ्रष्टाचार की गंगोत्री में डुबकी लगाना पसंद है। लोकपाल बिल के पक्ष में सहमति जाहिर करना उनके लिए अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारने सरीखा होगा। ऐसे में महिला आरक्षण बिल की तर्ज संसद में हंगामा मचने के आसार बहुत ज्यादा हैं। हालांकि आंदोलन के दौरान उमड़े जनसैलाब का खौफ संसदीय व्यवस्था का इस्तेमाल जागीर बनाने के लिए करने वालों के जहन में यकीनन मौजूद होगा। उन्हें इसका डर जरूर सताएगा, कि लोकपाल विधेयक पास नहीं होने पर एक बार फिर जन आक्रोश उभर सकता है। अन्ना ने इस विधेयक को पास कराने के लिए 15 अगस्त तक का समय तय किया है।
                      लोकपाल बिल का मसौदा तैयार करने वाली कमेटी में सिविल सोसायटी की नुमाइंदगी करने वाले शांति भूषण को लेकर रोज एक नया विवाद खड़ा हो रहा है। कभी रजिस्ट्री, तो कभी सीडी और अब नोएडा के नजदीक फार्म हाउस आवंटन का मामला । बिल ड्राफ्ट कमेटी से उनके इस्तीफे की मांग भी की जाने लगी है। लेकिन बिल का मसौदा तैयार करने के लिहाज से शांतिभूषण और प्रशांत भूषण की अनदेखी नहीं की जा सकती है। वहीं इस पर भी गौर करना होगा, कि बिल ड्राफ्ट कमेटी में शामिल लोगों को किसी तरह का फायदा होना मुमकिन नहीं। इधर इलाहाबाद हाईकोर्ट में दो लोगों ने ड्राफ्ट कमेटी को चुनौती देने वाली याचिका भी दायर की है। बहरहाल अन्ना की मुहिम अंजाम तक पहुंचेगी या नहीं इसका जवाब देना मुश्किल है। लेकिन इतना तो तय है, कि अन्ना की अगुआई में देश की जनता ने सियासत की बागडोर संभालने वालों को सचेत रहने के संकेत दे दिए हैं।
         

1 comment:

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