Monday, May 24, 2010

एक साल का अर्थशास्त्र


यूपीए सरकार ने दूसरे कार्यकाल के एक साल पूरे किए...इसकी खुशी कांग्रेसियों के चेहरे पर खास तौर पर देखी गई...जश्न भी मनाया गया...लेकिन एक साल के अर्थशास्त्र ने अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री के सामने कई सवाल खड़े कर दिए हैं...हालांकि वे इसे नजरअंदाज करने की हरसंभव कोशिश कर रहे हैं...इमानदार प्रधानमंत्री का खिताब हासिल करने वाले डॉ मनमोहन सिंह को इस साल करीब-करीब हर मसले को लेकर नाकामयाबी का सामना करना पड़ा है...अब भले ही कामयाबी का ढिंढोरा पीटने की कोशिश की जाए...लेकिन हकीकत इससे जुदा है....सरकार के मुखिया का अर्थशास्त्र आम आदमी को राहत देने में नाकाम रहा है...महंगाई की मार ने लोगों को बेहाल कर रखा है....साथ ही सरकार में शामिल उनके सहयोगी भी समय-समय पर उनके लिए परेशानी पैदा करते रहे....इस बात ने भी सहयोगियों पर नकेल कसने में नाकामी को सामने रखा....कभी युवा थरूर के गरूर ने मुश्किल पैदा की....तो कभी किसी और ने...खैर ले दे कर मनमोहन सरकार आधी आबादी को उनका हक दिलाने का मुद्दा उठाती है...लेकिन महिला आरक्षण बिल भी राज्यसभा के बाद लोकसभा में अब तक पेश नहीं किया जा सका है...ऐसे में इस अधूरी कामयाबी....पर इतराना अपने मुंह मियां मिट्ठू बनने सरीखा है....आम आदमी को अर्थशास्त्र में शामिल तकनीकी शब्दों से कोई मतलब नहीं...जिसका हवाला देकर सुख समृद्धि की तस्वीरे पेश की जाती है...विकास दर में इजाफा होने की बात भी आमजन के लिए बेमानी है....उसका तो वास्ता है...सीधे तौर पर बाजार से....दाल चावल की कीमतों से.....पेट्रोल डीजल की कीमतों से....जहां उसे राहत मिलने की जगह महंगाई का सामना करना पड़ रहा है....इस तल्ख हकीकत को नजरअंदाज कर कामयाबी का परचम लहराना....किस हद तक जायज है...इसका जवाब कांग्रेस के पास भी नहीं...झूठे दावे....वादे की बिसात पर सरकार के एक साल का जश्न....भारतीय लोकतंत्र की तकदीर भी है....और नई तस्वीर भी.....

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