Friday, October 22, 2010

अजब सा फसाना

अजब सा फसाना है... इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का भी....  अमूमन जिस किसी से बात कीजिए हताशा और निराशा भरे अल्फाज ही परोसेगा... साथ ही एक बात जरूर बताएगा... भाई इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में करियर की खोज नहीं करना... नहीं तो जिंदगी तबाह हो जाएगी... बात इससे आगे बढ़ी... तो आपको सहज ही अहसास होगा... पूरा चैनल जैसे उस शख्स पर ही टिका है...  परेशानियों के बोझ तले दबा थका हारा इंसान, जो चैनल में नहीं रहता तो जैसे चैनल ही बंद हो जाता....  बात किसी एक शख्स की नहीं... ऐसे शख्स बहुतायत हर संस्थान में मौजूद हैं... जिनके मुताबिक वे सुबह से शाम तक तबाह रहते हैं... सारा काम खुद करते हैं.... बॉस उनसे ही सारी बात कहते हैं... वे चैन से सो भी नहीं पाते... सोते-जागते हर वक्त उन पर काम का ही जुनून सवार रहता है... और भी बहुत कुछ....  अब बातें सुन कर तो आपके जहन में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की बेहतर तस्वीर नहीं बन सकती... साथ ही आपको लगेगा... कि वाकई इस सेक्टर में काम करना आसान नहीं... और कहीं से बेहतर भी नहीं.... लेकिन सच ये नहीं... इससे अलग हट कर है... सच तो ये है... कि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का सरोकार टीम वर्क से है... यहां अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता... पॉलिसी मेकर- पॉलिसी बनाएंगे... तो उसको अंजाम तक पहुंचाने के लिए एक लंबी टीम है... स्क्रीप्ट लिखने वाले से लेकर... एडिट करने वाले.... बुलेटिन बनाने वाले और फिर उसे ऑन एयर करने वाले तमाम लोगों का एक दल है... जिसमें किसी एक की मेहनत को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता...  हां ये बात जरूर है... कि कुछ बहुचर्चित चैनलों ने जिस तरह मंदी के दौर में छंटनी की... या फिर दुकानदारी करने के लिहाज से चैनलों की बाढ़ आई... और वक्त के साथ टांय-टांय फिस्स हो गए... उसने एक ब्लैक स्पॉट बना दिया है... लेकिन आज भी ऐसे कई संस्थान हैं... जहां बतौर कामगार आपको संतुष्टि हासिल होती है... अगर आप बेहतर सोच रखते हैं..... क्योंकि संतुष्टि का सीधा वास्ता आपकी सोच से है.... रही बात हाउस में होने वाले उतार-चढ़ाव की.... तो क्या आपके घर और निजी जिंदगी में उतार चढ़ाव नहीं आता... क्या आपको घर के मुखिया से कभी कोई शिकायत नहीं होती... जिस तरह से निजी जिंदगी की गाड़ी पटरी पर चलती है... ठीक वैसे ही आपको काम के दौरान भी उतार-चढ़ाव झेलना पड़ता है... इसे सहज ही स्वीकारना पड़ेगा...  इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से दाल-रोटी चलाने के बावजूद शिकायतों का पुलिंदा लेकर बैठे लोगों को चाहे तो आप साइको कहें... या फिर बेहद चालाक.... साइको इसलिए... कि बेहतर जानकार और जहीन होने का दावा करते हैं... साथ ही शोषण की भी बात करते हैं... इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के मौजूदा स्वरूप से दुखी भी हैं.... लेकिन फिर भी बतौर कामगार जुड़े रहते हैं....  ऐसे में उन लोगों को दिमागी बीमार नहीं तो और क्या कहेंगे... नहीं तो वे बेहद चालाक हैं... और हाउस से लेकर बाहर तक बातों को इस तरह परोसने के पीछे खुद की मार्केटिंग का मकसद हो सकता है... जिससे सभी को अहसास हो... कि उनसे बेहतर कामगार संस्थान में नहीं.....

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