Friday, January 28, 2011

कातिलों के शहर में










थक गए थे कदम,थम गया सफर
कातिलों के शहर में आशियाना बना लिया

कब तक राह-ए-वफा पर आवारा फिरूं
बीमार जिंदगी की, कब तक दवा करूं
आह और अश्क को गले लगा लिया
कातिलों के शहर में आशियाना बना लिया

बेवफा नहीं है ,कातिलों का खंजर
बहकता नहीं कभी ,किसी का खून पीकर
खंजर की इस अदा ने दीवाना बना दिया
कातिलों के शहर में आशियाना बना लिया

करते हैं कत्ल जब भी, करते हैं मातमपुर्सी
बेदर्द कातिलों की हमदर्दी का ये आलम
काफिर नजर को उनका अंदाज भा गया
कातिलों के शहर में आशियाना बना लिया

थक गए थे कदम,थम गया सफर
कातिलों के शहर में आशियाना बना लिया

2 comments:

  1. थक गए थे कदम,थम गया सफर
    कातिलों के शहर में आशियाना बना लिया
    बहुत अच्छा लगा दर्द भरा गीत। बधाई।

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  2. बहुत खूब बहुत ही सुंदर । शुभकामनाएं

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