कारखाना सेठ का है,या कामगार का है
कल-पुर्जों को इससे मतलब नहीं है
हुक्मरानों को ये सवाल चुभता है
लेकिन सवाल सदियों से तन कर खड़ा है
हर चुप्पी उसे मजबूती देती है
लोहे की उपज,सेठ का चना चबेना है
लेकिन तपिश झेलने की आदत नहीं है
रमुआ,कलुआ बदन झुलसाते रहते हैं
हादसे का अजगर उन्हें निगल जाता है
सवाल और भी पुख्ता हो जाता है
कारखाना सेठ का है,या कामगार का है
काश की आपने जिस सवाल को उठाया है उसका कोई जबाब दे पाता। जिस दिन इसका जबाब मिल जाएगा उस दिन सुराज आ जाएगा।
ReplyDeleteबहुत संुदर प्रस्तुति।
bahut prabhaw shali lekhan ..
ReplyDeleteumda post
mere blog par aapka swagat hai..
http://dadikasanduk.blogspot.com/
कामगारों का पसीना बड़ा, या सेठ का रुपया...?
ReplyDeleteअच्छा लिखा है शरद जी..
सटीक बात...
ReplyDeleteलेकिन सवाल सदियों से तन कर खड़ा है
हर चुप्पी उसे मजबूती देती है