यही हमारी संवेदनहीन मानसिकता का प्रमाण है .......
शरदिंदु जी प्रणाम !बहुत सटीक व्यंग्य है ...लोगों के 'दो चेहरों' पर दौड़ती भागती जिन्दगी में हर काम औपचारिकता ही तो बन कर रह गया है ...
यही हाल है...
यही हमारी संवेदनहीन मानसिकता का प्रमाण है .......
ReplyDeleteशरदिंदु जी प्रणाम !
ReplyDeleteबहुत सटीक व्यंग्य है ...लोगों के 'दो चेहरों' पर
दौड़ती भागती जिन्दगी में हर काम औपचारिकता ही तो बन कर रह गया है ...
यही हाल है...
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