Tuesday, May 18, 2010

हंगामा क्यों बरपा

एक पत्रकार की हत्या...नाम निरूपमा पाठक....खबर तैरती है....दो दिनों तक किसी ने सुध नहीं ली....लेकिन अचानक निरूपमा की हत्या को लेकर शोर गुल उभरने लगता है....आत्महत्या...क्यों करेगी निरूपमा सबका सवाल यही होता है....मामले में नया मोड़ आता है...पोस्टमार्टम रिपोर्ट सामने आने के बाद....निरू अकेले नहीं मरी....बल्कि उसके साथ एक अजन्मा भी मारा गया...साथ ही रिपोर्ट में जिक्र रहता है....दम घुटने से मौत...फांसी लगा कर मौत की बात सवालों से घिर जाती है....और शोर बढ़ता जाता है....परिजन हत्या के आरोपी बन जाते हैं...इधर पाठक परिवार भी निशाना साधता है...निरू के प्रेमी पर....सहज ही एक लड़की ने जान गंवा दी....मामला भी साफ नहीं...साजिशन हत्या की बू आती है...इधर दिल और दिमाग ये मानने को तैयार नहीं...कि कोई मां-बाप भी औलाद की इस निर्मम तरीके से हत्या कर सकते हैं....दो धड़ों में बंट जाते हैं लोग.....जायज नाजायज को लेकर बहस का सिलसिला चल निकलता है....निरूपमा ने गलत किया था...शादी से पहले ही प्रेमी के साथ जिस्मानी ताल्लुकात बनाया....बिलकुल शर्मनाक....इस लिहाज से मां-बाप की क्रूरता और अपराध को जायज करार देने वालों का जत्था...तो वहीं जिंदगी को अपने अंदाज से जीने की हिमायत करने वालों का दल....खैर बहस के बीच एक सच भी सीना तान कर खड़ा है...निरूपमा अब इस दुनिया में नहीं रही....हत्यारा कौन इसका फैसला कानून के हवाले कर दिया गया...जहां हर बात सबूतों के आधार पर तय की जाती है...लेकिन इस एक मौत ने कई अहम सवाल खड़े कर दिए है...क्या निरूपमा की मौत पर हंगामा इसलिए ...कि वो एक पत्रकार थी....कस्बाई ईलाकों में ना जाने कितनी निरूपमा असमय ही काल के गाल में समा जाती है...सिलसिला बदस्तूर सदियों से जारी है...लेकिन उनको लेकर हो हल्ला नहीं मचता....आखिर क्यों....ऐसा क्यों होता है...इसके पीछे का सच जानने की कोशिश भी की जाए......इसलिए कि कस्बाई इलाके में हर इंसान समाज का कथित तौर पर समाज का पहरुआ बनने की कोशिश कर रहा है....जायज नाजायज की परिभाषा अपने लिहाज से गढ़ कर उसे थोपने से बाज नहीं आता है.......धर्म ...संस्कार...संस्कृति का हवाला देकर अपनी बात रखने या यूं कहें...कि झूठी जिद को सच में बदलने का कोई मौका नहीं चूक रहा....अब जरा संस्कार और संस्कृति...वेद और पुराण का हवाला देने वालों से ये तो पूछा जाए...कि गोपियों संग रास रचाने वाले को भगवान कह कर क्यों नवाजते हैं...लोग....वो भी एक नहीं सैकड़ों की तादाद में गोपी और कन्हैया की रासलीला...वाह अलौकिक नजारा....लोग पुलकित हो उठते हैं...लेकिन बात जब उनके अपने घर की हो...तो जैसे होम करते वक्त हाथ जल जाता हो...ये है पाखंड का एक नमूना...कृष्ण भगवान थे...रास रचाना उनका हक था...सैकड़ों नारी के साथ उनकी हर हरकत पाकीजा थी...लेकिन एक लड़की जो अपने प्रेमी पर अपना सर्वस्व निछावर कर देती है...तो वो बन जाती है बदचलन....मुद्दा ये नहीं...कि जायज क्या है....बात इतनी सी है...कि परिभाषा एक होनी चाहिए...जायज सबके लिए जायज और नाजायज भी....खैर पता नहीं...जायज और नाजायज का फैसला करने का हक इंसान को किसने दिया...संविधान के मुताबिक भी इसके लिए कानून बनाए गए....लेकिन बेपरवाह इंसान .........बहरहाल निरूपमा ने जो कुछ भी किया...उसे दोषी करार नहीं दिया जा सकता...एक बालिग लड़की..........प्रेम और त्याग की मिसाल बन कर........अपनी जिंदगी खुशी-खुशी जीने का हक मांग रही थी...लेकिन उसे बदले में मिली मौत....लेकिन हंगामा निरूपमा तक ही सिमट जाए...तो ये अच्छी बात नहीं.....अगर फिक्रमंद हैं आप निरूपमा की मौत को लेकर...तो बनिए हर उस निरूपमा की आवाज....जिनकी सिसकियां संकरी गलियों और बंद कोठरी में दम तोड़ देती है...उस सिसकी को लेकर बहुत कम ही लोग फिक्रमंद हो पाते हैं...खास कर बिहार और झारखंड की जमीन पर कस्बाई इलाकों में ना जाने कितनी निरूपमा इस जहां से आगे का सफर तय कर चुकी है...और उनके कत्ल का किस्सा सन्नाटे को नहीं चीर सका.....

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