Sunday, June 13, 2010

लघु कथा: राघव बाबा

सगुना की बेटी बीमार थी...तेज बुखार और बड़बड़ाहट...तीन दफे इलाज के लिए नजदीक के डॉक्टर साहब के पास लेकर जा चुका था...सुई दवाई का जरा भी असर नहीं हुआ...मर्ज कायम रहा....शहर में बड़े डॉक्टर के पास इलाज के लिए पैसे की जरूरत पड़ती....उतने पैसे उसके पास नहीं थे...उसकी पत्नी सुखिया जिद पर उतर गई...बीमारी हो तब तो सुई दवाई का कोई असर दिखे...ये तो पड़ोस की सवितरी का दिया हुआ है...इसका इलाज सिर्फ राघव पंडित जी कर सकते हैं....अब वो किसी भी हाल में किसी की नहीं सुनने वाली...तेज कदमों से बेटी को लेकर पंडित जी के घर बढ़ चली...राह में ही राघव बाबा मिल गए...सुखिया ने पांव पकड़ लिए....बाबा बचा लो मेरी बेटी को...सवितरी ने इसकी जान लेने का इंतजाम कर दिया है...पड़ोस में ही डायन बस गई है...खेती में भी नुकसान....हर पल परेशानी....बाबा के चेहरे पर सुखिया को देखते ही जो हल्की मुस्कान आई थी...वो थोड़ी सी गंभीरता में बदल गई...और जुबान से हरि-हरि की आवाज निकली....मन ही मन उसने सोचा....प्रभु की लीला....एक वहीं तो थी जो हाथ नहीं आई थी...उसको देख कर ना जाने कितने ख्वाब संजोए थे....आज दर पर दस्तक दे रही है...लेकिन सगुना को तो इन सब बातों पर यकीन नहीं.....राघव पंडित बोले.....सुखिया ने तुरंत जवाब दिया...पंडित जी उनसे क्या लेना...मैं आई हूं आपके पास...आप कुछ कीजिए....राघव का दिमाग तेजी से साजिश रचने लगा...जल्दबाजी में कुछ नहीं सूझ रहा था....इधर हाथ आए मौके को गंवाना भी नहीं चाहता था....उसने शाम ढले उसे गांव से बाहर बनी अपनी कुटिया पर आने को कहा....सारा दिन राघव ने इस सोच में गुजार दिया...किस तरह वह अपनी कुटिल चाल को अंजाम तक पहुंचाए....वक्त का फासला सिमट गया....कुटिया के अंदर बैठा राघव अब तक चार पैग ले चुका था....पूजा की शुरुआत हुई....कुछ पल बुदबुदाने के बाद पंडित ने बताया...दुष्ट डायन के साथ एक ब्रह्म भी है...जो किसी तरह बच्ची को छोड़ने के लिए तैयार नहीं...सुखिया को भी पूजा में साथ देना होगा....मरती क्या ना करती....बेटी का चेहरा सामने आते ही....उसे बचाने की खातिर प्रसाद ग्रहण करने के साथ सुखिया भी पूजा में शामिल हो गई...फिर बाबा राघव पर ब्रह्म खुद सवार हो गया...उसने सुखिया से बच्ची का साथ छोड़ने के लिए खास मांग रखी....प्रसाद के सुरूर में उस अबला को बस इतना ही याद था...कि किसी तरह बेटी को बचाना है....फिर क्या था चंद लम्हों में ब्रह्म की मुराद पूरी हो गई...बाबा राघव होश में आए....उसे इस बात का जिक्र किसी से करने के लिए मना किया...इस तरह भी भला वो किस मुंह से इसका खुलासा करती....सब कुछ लुटा कर उसे इतना ही सुकून था...कि उसने अपने जिगर के टुकड़े को बचाने में कामयाबी हासिल की है....काफी देर हो चुकी थी...दौड़ी भागी वो घर पहुंची....लेकिन घर के अंदर से उठ रही सगुना की सिसकियों से उसके कदम थम गए....दरवाजे पर उसे देखते ही सगुना की सिसकिया और तेज हो गई....वो दोनों हाथों से सिर पकड़ कर बैठ गई....उसकी आंखों के सामने अंधेरा छाने लगा..................

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