Sunday, June 13, 2010
आइने में बिहार
कश्मीर से कन्याकुमारी तक बिहार मशहूर है....आज से नहीं सदियों से....इसकी वजह बुद्ध और सम्राट अशोक जैसे लोग रहे हैं....तक्षशिला विश्वविद्यालय के साथ ही....चौसा और बक्सर की लड़ाई रही है....धार्मिक नजरिए से रामायण के कई प्रसंग रहे हैं....साथ ही महात्मा गांधी और जयप्रकाश नारायण के आंदोलन भी रहे हैं...बात चाहे शहादत की हो...सोच की...या काबिलियत की सूबे बिहार को नजरंदाज करना मुश्किल रहा है...लेकिन आधुनिक दौर में खास कर 80 के दशक के बाद बिहार की छवि में जो बदलाव आया....उसकी वजह से पूरे देश के सामने रोते सिसकते और पिछड़े बिहार की एक तस्वीर मौजूद थी....जगन्नाथ मिश्रा के राजनीतिक कार्यकाल से भ्रष्टाचार को सामाजिक शिष्टाचार में बदलने की पहल की गई...जिसने ना सिर्फ बिहार की तस्वीर बदल दी...बल्कि तकदीर भी बदल दी... रही सही कसर पूरी की राजद के कार्यकाल ने....लालू और राबड़ी की सत्ता ने जगन्नाथ मिश्रा की नींव पर बुलंद इमारत खड़ी की....घोटाले और राजनीति के अपराधीकरण की बिसात पर...और पूरे देश में लोगों के सामने एक नया बिहार था...जहां अपहरण सबसे बड़ा उद्योग बन गया...जाति पहचान बन गई....इंसान हैवान बन गया....इस दौर में बिहार ने थोड़ा बहुत सम्मान जो बचा था...उसे गंवा दिया....पूरे देश में एक ही संदेश था...बिहार का मतलब होता है...भय,भ्रष्टाचार और भूख.......लेकिन कुदरत का फलसफा....बदलाव होना ही है....सामने आया और नतीजा रहा सत्ता में परिवर्तन....सुशासन की बयार का सुहाना सपना लेकर मुख्यमंत्री के पद पर काबिज हुए नीतीश कुमार.... पहला साल समझने में गुजर गया....तो दूसरा परखने में......तीसरा साल कुछ करने की कोशिश और बदलाव का दावा किया गया...तो चौथे साल में अपनों की बेरुखी ने नाक में दम कर दिया....बात ही बात में एक बार फिर वक्त आ गया है...जनता के बीच जाने का....हालांकि बीते वक्त के दौरान सुशासन का ख्वाब हकीकत में नहीं बदल सका...और इसमें नीतीश कसूरवार नहीं....बदलाव की आस रखने वालों की गलती है....निजाम बदला....हुक्मरानों के चेहरे बदल गए....लेकिन टीम तो वही थी....साधु यादव का आतंक नहीं रहा....शहाबुद्दीन सलाखों के पीछे चले गए...तो उनकी जगह लेने के लिए अनंत कुमार और सुनील पांडेय सरीखे लोग आ गए....मुस्लिम और यादव समीकरण के बदले भूमिहार और कुर्मी का नया समीकरण बन गया....सत्ता की दलाली साधु और सुभाष यादव की जगह नीतीश कुमार के खासमखास ललन सिंह करने लगे.....भ्रष्टाचार कायम रहा....लेनदेन करने वाले बदल गए...ट्रांसफर पोस्टिंग का तरीका जस का तस रहा....अब बात आंकड़ों में नजर आने वाले सुशासन की....जिसका ढोल बजाया जा रहा है....चुनाव को देखते हुए डॉक्यूमेंट्री भी तैयार है....सड़क,बिजली,पानी,रोजगार की सुविधा के साथ भय,भ्रष्टाचार मुक्त बिहार...सीडी में मौजूद होगी सूबे की ये तस्वीर......हकीकत में तो सूबे के किसी हिस्से में ऐसा नजर नहीं आ रहा....बुलंद बिहार की तस्वीर उकेरने का दावा करने वाले सुशासन बाबू का साथ कुछ सालों तक सत्ता सुख भोगने वाले अपनों ने भी छोड़ दिया है...और सत्ता सुख खोने वाले लालू के सिपहसलारों ने दामन पकड़ लिया है....हालांकि जनता ने नीतीश को संकेत दे दिया था...कि ये समीकरण उनके लिए सियासी रूप से फायदेमंद नहीं....खैर लम्हा-लम्हा सियासी जंग की घड़ी नजदीक आ रही है....और सूबे में तरक्की के सफर की फिल्मी तस्वीर के अलावा सुशासन बाबू के पास कुछ भी नहीं....हालांकि लोगों के पास भी विकल्प का अभाव है.....ऐसे में सियासत के संग्राम में इस बार क्या होता है...ये देखना दिलचस्प होगा......सच पूछिए तो इन बीते पांच सालों में बिहार ने कुछ पाया है.....किसी बिहारी ने कुछ कर दिखाया है.....इसकी चर्चा की जाए...तो सिर्फ और सिर्फ अभयानंद और आनंद की टीम ने सुपरथर्टी का कमाल....जिसे पत्थर पर दूब उगाने सरीखा करार दिया जा सकता है....अपने अधिकारी के इस बेमिसाल जोश और जज्बे से नीतीश कुमार सीख ले सकते थे....लेकिन उन्होंने नहीं ली....
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बहुत सही । प्रशंसनीय ।
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