Friday, October 29, 2010

लाल आतंक-2

गुजरते वक्त के साथ संतू का नाम नक्सलियों के लिए अनजाना नहीं रहा... एक मामूली कैडर से हार्डकोर कमांडर तक का सफर उसने बहुत जल्दी तय कर लिया... जिंदगी का एक ही मकसद सिर्फ और सिर्फ अन्याय के खिलाफ लड़ना... अब ये बात दीगर थी कि अन्याय की परिभाषा अपने लिहाज से गढ़ने की आदत सी बन गई थी... उसका नाम पुलिस और प्रशासन के लिए सरदर्द साबित होने लगा था... हर नक्सली घटना के पीछे संतू का नाम उछलता था... करीब तीस घटनाएं.... दर्जनों बम ब्लास्ट... सैकड़ों पुलिस वालों को मौत के घाट उतारने वाला आतंक और दहशत का दूसरा नाम संतू.... आज की रात भी वो एक ऑपरेशन को अंजाम देने निकला था... जंगलों के बीच से पुलिस का दस्ता गुजरने वाला था... जिसे चारों तरफ से घेर कर हमला करना था...

पूरी तैयारियों के साथ नक्सलियों का जत्था जंगलों में बिखर चुका था... सात सौ नक्सली इस ऑपरेशन में शामिल थे... जिनका कमांडर संतू था... उसका एक इशारा विध्वंस के लिए काफी था... लेकिन अब तक कामयाबी का मुंह देखने वाला संतू इस बार मात खा गया.... घेराबंदी तो की गई थी... लेकिन पुलिस की रणनीति ज्यादा बेहतर निकली.... पुलिसवालों ने दोहरी तैयारी कर रखी थी.... और जंगल से गुजरने वाले पुलिस के दल के पीछे दो टीमें और मौजूद थी.... पहले दल पर हमला होते ही दूसरे और तीसरे दल ने नक्सलियों को घेर लिया.... नक्सली चारों तरफ से घिर चुके थे... इस गोलीबारी में कमांडर संतू को गोली लग चुकी थी... उसकी आंखों के सामने अंधेरा घिर रहा था... मौत का सौदागर भी मौत की सर्द आहट सुन कर बैचेनी का शिकार था... वो मरना नहीं चाहता था.... अतीत का एक-एक पल उसकी आंखों के सामने से गुजर रहा था....

                            ... वो बिस्तर पर पड़ा था.... धुंधला सा नजारा उसके सामने था... सामने के बिस्तर पर मौजूद था खाकी वर्दी में लिपटा एक नौजवान....  और भी कई सुरक्षाकर्मी उनके बेड के इर्द-गिर्द टहल रहे थे.... पता नहीं कहां है वो.... लेकिन तभी किसी की आवाज कानों में पड़ी.... अरे इसे होश आ रहा है... और फिर कुछ लोग उसके करीब आ गए... उसे एहसास हुआ... शायद इंजेक्शन लगाया जा रहा था....

                                          उसे होश आ चुका था.... मीडिया वालों का जत्था उससे मुखातिब था..... पहला सवाल था... आपने कई पुलिस वालों का खून बहाया... आज जब एक पुलिस वाले ने खून देकर जान बचाई है.... क्या कहना चाहते हैं आप ...... संतू के पास कोई जवाब नहीं था... बस आंखों से निकलने वाला नीर और मौन... डॉक्टर ने तमाम लोगों को मना किया...  अभी सवाल नहीं करें....

                                                        सही मायनों में संतू को होश आ चुका था.... वो सोच रहा था... कितना गलत था वो.... एक पुलिस के दल ने उसके साथ नाइंसाफी की... जिसके बाद वो नक्सली बन बैठा... सैकड़ों पुलिसवालों को मौत के घाट उतार दिया...  ये भी तो आखिर पुलिसवाला ही था... जिसने मुठभेड़ में घायल होने के बाद उसे अस्पताल तक लाने का काम किया... अपना खून देकर उसको नई जिंदगी दी... आखिर वो चाहता तो उसे गोली मार सकता था....  संतू को मार कर उसे बड़ा इनाम मिल जाता.... लेकिन उसने ऐसा नहीं किया.... अब उसे खुद की सोच पर घिन आने लगी थी...  कितना गलत था वो.... बार-बार उसके जहन में एक ही सवाल उठता था... नाइंसाफी का बदला तो उसने लोगों को मौत के घाट उतार कर ले लिया... लेकिन क्या अब इस अहसान के बदले वो मारे गए किसी एक पुलिसवाले की जिंदगी वापस लौटा सकता है.... नहीं..............  मानवता का सबक उसे पहली बार मिला.... आज उसने फैसला कर लिया है.... कि अब उसे लाल आतंक के खिलाफ आवाज उठाने के लिए जाना जाएगा.....
                                         

2 comments:

  1. bahut khubsurat post pad kar bahut accha lga .
    par dost har insan ki soch alag alag hone se use in sab trah ki khushi or gum ka samna karna padta hai .agar ek police wale ne use galat rah me dala to dusre ke acche vicharo ne use ek hi pal me accha bhi bna diya .
    shiksha prad rachna bahut bahut bdhai dost .

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