Tuesday, October 26, 2010

कहानी : लाल आतंक

संतू की आंखों के सामने हर उस पल की तस्वीर थी.... सात साल पहले जिंदगी के वो खूबसूरत पल....  हर हाल में खुशहाल रहने वाला संतू.... अचानक एक दिन गांव में पुलिस का काफिला आता है... उस समय वो गांव के बाहर बगीचे में बैठा परिंदों की मस्ती निहार रहा होता है.... पुलिसवाले आकर उसे घेर लेते हैं... और फिर लेकर चल देते हैं... गांव की तलाशी के वक्त उसे साथ रखा जाता है... फिर थाने में शुरू होता है सवालों का सिलसिला... बताओ गांव में कितने लोग आते हैं... कब आते हैं... किसके यहां रुकते हैं... संतू हर सवाल के जवाब में सिर्फ इतना ही कह पाता है... कि उसे नहीं मालूम... हर ना के साथ उसका टेबल परेड होता है... अगले दिन कैमरे के सामने पुलिस के अधिकारी होते हैं... और उनके साथ होता है नक्सली संतू... सुर्खियां बनती है एक नक्सली को पुलिस ने धर दबोचा...

                                तीन साल तक जेल में रहने के बाद संतू गांव आता है.... एक बड़ा बदलाव आ चुका होता है उसमें.... हर पल चहकते रहने वाला नौजवान अब चुप्पी साधे रहता है.... लेकिन उसकी मुसीबत खत्म नहीं होती... असली मुसीबत तो अब शुरू होती है... दरअसल जेल से छूटने के बाद लगातार कुछ लोग उससे मिलने आते हैं... और उसके साथ हुई ज्यादती का बदला लेने की बात करते रहते हैं... बार-बार उसे कहा जाता है... कि कुछ समय निकाल कर वो उनके मुखिया से मिले...  रोजाना की ना एक दिन हां में बदल जाती है... और वो उनके साथ चल पड़ता है...  गांव में गुजारे गए उस आखिरी पल की याद आज भी उसके जहन में ताजा है...

                                          पहाड़ों से गुजरते हुए जंगलों के बीच सैकड़ों की तादाद में लोग मौजूद हैं... जश्न का माहौल.... लाल सलाम की गूंज...  हथियारों से लैस महिलाएं और पुरुष... सभी पुलिस की वर्दी में नजर आते हैं....  संतू से मुखातिब होता है एक शख्स... जो कहता है... कि आज वो आराम करे...  कल उसकी बातचीत मुखिया से कराई जाएगी...

                                           कैंप में उसके साथ तीन और लोग होते हैं... रात को उनकी बातचीत में वो भी शामिल होता है... कई सवाल जहन में मौजूद हैं... वो उनसे पूछता है... क्या हो रहा है यहां.... एक बंदा बताता है... माओ को याद किया जा रहा है... अब बड़ा सवाल है.. कि माओ कौन है.... जवाब मिलता है... गरीबों को हक दिलाने के लिए आंदोलन की राह दिखाने वाला शख्स.... जिसने हक को छिनना सिखाया... जिसने बताया... कि जुल्म सहने की जरूरत नहीं.... मुंहतोड़ जवाब देने का माद्दा रखो...  वो सुन भले ही रहा था... लेकिन उसकी खोपड़ी में ये सब कुछ समा नहीं रहा था... अगले दिन उसे मिलाया जाता है उस शख्स से जिसके लिए वो यहां तक पहुंचा था....  बुलंद आवाज में उसे समझाने की कोशिश की जाती है... कि जुल्म करना नहीं.... सहना भी एक अपराध है... भरोसा दिलाया जाता है... कि गरीबों का ये हथियारबंद जत्था उसके साथ है... उसके साथ हुई ज्यादती का बदला लिया जाएगा... और उसे इस काबिल बनाया जाएगा... कि वो भी सताए हुए इंसान का मददगार बन सके...

क्रमश:

                              

3 comments:

  1. कहानी बहुत ही मार्मिक और कही न कही सच्चाई के बहुत करीब लगी पुलिसिया आतंक और जुल्मो सितम की वजह से कही न कही अच्छे लोग भी बुरे व्यक्तियों के चंगुल में पड़कर भटक जाते है आगे क्या होगा इंतजार रहेगा !

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  2. आपका,लेख की दुनिया में हार्दिक स्वागत
    सही कहा आपने

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