जालिमों की दुनिया में
दीवानों का क्या काम
जुनून-ए-शौक*(प्रेम का पागलपन) ने
कर दिया बदनाम
तिशनगी-ए-शौक*(उत्साह की प्यास) में
मयखाना क्या गया
साकी की बंदगी*(पूजा) ने
दिया यक नया इल्जाम
नहीं तलाश थी
कजा*(किस्मत)में निशात*(खुशी) की
ख्वाबों-ख्यालों में था
फकत लज्जत-ए-अलम*( दुख का मजा)
जोश-ए-जुनूं में
नहीं तस्लीम*(मान लेने) की फितरत
मौज-ए-पायाब(उथले पानी की लहर) ने
परखा है कब अंजाम
जोश-ए-जुनूं में
ReplyDeleteनहीं तस्लीम*(मान लेने) की फितरत
मौज-ए-पायाब(उथले पानी की लहर) ने
परखा है कब अंजाम
खुबसूरत गज़ल हर शेर दाद के क़ाबिल, मुबारक हो
तिशनगी-ए-शौक*(उत्साह की प्यास) में
ReplyDeleteमयखाना क्या गया
साकी की बंदगी*(पूजा) ने
दिया यक नया इल्जाम
खुबसुरत गजल। हर एक शेर पर वाह वाह करने को दिल करता है।
शेखर भाई, बहुत खूब लिखते हैं आप। बधाई स्वीकारें।
ReplyDelete---------
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