Friday, February 18, 2011

जुनून-ए-शौक









जालिमों की दुनिया में
दीवानों का क्या काम
जुनून-ए-शौक*(प्रेम का पागलपन) ने                 
कर दिया बदनाम

तिशनगी-ए-शौक*(उत्साह की प्यास) में                      
मयखाना क्या गया
साकी की बंदगी*(पूजा) ने                            
दिया यक नया इल्जाम

नहीं तलाश थी
कजा*(किस्मत)में निशात*(खुशी) की                 
ख्वाबों-ख्यालों में था
फकत लज्जत-ए-अलम*( दुख का मजा)                         

जोश-ए-जुनूं में                          
नहीं तस्लीम*(मान लेने) की फितरत                     
मौज-ए-पायाब(उथले पानी की लहर) ने
परखा है कब अंजाम


3 comments:

  1. जोश-ए-जुनूं में
    नहीं तस्लीम*(मान लेने) की फितरत
    मौज-ए-पायाब(उथले पानी की लहर) ने
    परखा है कब अंजाम
    खुबसूरत गज़ल हर शेर दाद के क़ाबिल, मुबारक हो

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  2. तिशनगी-ए-शौक*(उत्साह की प्यास) में
    मयखाना क्या गया
    साकी की बंदगी*(पूजा) ने
    दिया यक नया इल्जाम
    खुबसुरत गजल। हर एक शेर पर वाह वाह करने को दिल करता है।

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  3. शेखर भाई, बहुत खूब लिखते हैं आप। बधाई स्‍वीकारें।

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    ब्‍लॉगवाणी: ब्‍लॉग समीक्षा का एक विनम्र प्रयास।

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