भेड़िया आया, भेड़िया आया
शोर सुनाई नहीं देता
क्योंकि
भेड़िया खास नहीं रहा
आम हो गया है
पहले आता था
कभी-कभी
जंगलों से
रिहायशी इलाकों में
लेकिन
बना लिया आशियाना
कंक्रीट के जंगलों में
बदल गया है
चेहरा भेड़िए का
लेकिन
नहीं बदला है
तरीका शिकार का
जांघ पर हमला
घायल को थकाना
फिर भूख मिटाना
एक नहीं
दो नहीं
तीन नहीं
सैकड़ों भेड़िए
मौजूद हैं
इस बस्ती में
इसीलिए तो
भेड़िया आया, भेड़िया आया
शोर सुनाई नहीं देता
क्योंकि
भेड़िया खास से
आम हो गया है
अच्छी रचना , लिखते रहिये हम पढ़ते रहेंगे
ReplyDeleteहर जगह अब भेडिये ही हैं किसी न किसी रूप में ..अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteभेड़िया आम हो गया है ...सही कहा !
ReplyDeleteअब उन्हें जंगलों की कहाँ जरुरत है , बीच शहर में बस गये हैं !
bhediyon ke bich ab bhediye ka darr kya dikhana ...
ReplyDeleteबेहतरीन रचना...
ReplyDeleteबहुत बहुत सही कहा....
ReplyDeleteएकदम सटीक...
http://urvija.parikalpnaa.com/2011/06/blog-post_11.html
ReplyDeleteबेहतरीन और सटीक कटाक्ष आज के माहौल पर..
ReplyDeleteवाह सर सही पहचाना आपने....
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