Monday, June 7, 2010

जख्म के कसूरवार और इंसाफ की तस्वीर


अदालत के बाहर हर उम्र के लोग फैसले का इंतजार कर रहे थे...हताशा और निराशा के बीच उम्मीद किस तरह जिंदा रहती है...ये उन्हें देख कर सहज ही समझा जा सकता था...2 और 3 दिसंबर 1984 की दरम्यानी रात....अंधेरे में यूनियन कार्बाइड कारखाने से जहरीली मिथाइल आइसोसायनेट का रिसाव....मौत का तांडव....सुबह के उजाले में लाशों का ढेर...भला कौन भूल सकता है...उस मंजर को....ये लोग उनमें से हैं....जिसने या तो अपनों को खोने का दर्द झेला...या मौत से जूझ कर जिंदगी पाने का...या फिर दोनों एक साथ....25 साल का लंबा अरसा गुजार दिया...इन लोगों ने....अदालत की चौखट पर इस आस में...कि उन्हें इंसाफ मिलेगा...गुनहगारों को सजा मिलेगी....इस ढाई दशक के अरसे में पीड़ितों के हिस्से मुआवजे के चंद रुपयों के अलावा कुछ नहीं आया....और लंबे इंतजार के बाद फैसला भी आया...तो आंखों की नमी कम नहीं हुई....वजह साफ है....कानून की किताबों के मुताबिक कसूरवार को दी गई सजा...अधिकतम थी.....तो पीड़ितों की उम्मीद के पैमाने पर सौ में दशमलव एक से भी नीचे.....फैसला आने के बाद कोर्ट के बाहर खड़ी भीड़ ने गुस्से का इजहार कर ऐसा जाहिर भी कर दिया....गवाहों और सबूतों के आधार पर सीजेएम मोहन पी. तिवारी ने सात आरोपियों केशव महिंद्रा, विजय गोखले, किशोर कामदार, जे. मुकुंद, एस. पी. चौधरी, के. बी. शेट्टी, एस. वाई कुरैशी को 304 ए के तहत दोषी करार दिया.....और उन्हें दो-दो साल की सजा के साथ एक-एक लाख रुपए जुर्माना देने का फैसला सुनाया....साथ ही यूनियन कार्बाइड इंडिया पर पांच लाख रुपये का जुर्माना लगाया.....एक आरोपी आर. बी. राय चौधरी की मौत हो चुकी है....जबकि मुख्य आरोपी वारेन एंडरसन फरार है......खैर न्याय के मंदिर में इंसाफ की तस्वीर बनाई जा चुकी है....और इस पर व्यक्तिगत राय देना भी सही नहीं ठहराया जा सकता....लेकिन सब कुछ लूटा देने वालों को इसकी फिक्र कहां...उनका आक्रोश....उनके कमेंट्स फैसला आने के साथ ही नजर आने लगा....और सुनाई देने लगा....वे कसूरवारों के लिए इससे ज्यादा बहुत ज्यादा सजा चाहते थे.........

3 comments:

  1. अप्रत्याशित परिणाम ।
    लेखन प्रशंसनीय ।

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  2. फैसले के बाद अब इस त्रासदी से जुड़े शर्मनाक पहलु उजागर हो रहे हैं, जो देश के कानूनी लाचारी के साथ-साथ सरकारों की मक्कारी और उसके अमानवीय चेहरे को उजागर कर रहे हैं। बात चाहे हजारों मौत का जिम्मेदार एंडरसन को सरकारी विमान से दिल्ली भेजने के खुलासे की हो या उसके प्रत्यर्पण में जानबूझकर बरती गई लापरवाही की....सारा मामला हमारे सिस्टम के निकम्मेपन और उसकी नाकामी को बयां कर रहा है। अब प्रदेश सरकार हाई कोर्ट में अपील करने की बात कर रही है...इस सादगी में कौन ना मर जाए ए खुदा...लड़ते हैं और हाथ में तलवार भी नहीं। अब शिवराज भइया को कौन समझाए कि जनाब जिस मामलों की जांच सीबीआई करती है उस मामले में निचली अदालत में दिए गए फैसले को ऊपरी अदालत में चुनौती ही नहीं दी जा सकती..। अब अगर एक बार ऊपरी अदालत में अपील कर भी देंगे तो अगले 25 साल भी ऐसे ही किसी फैसले से ज्यादा की उम्मीद भी मत करिए..। क्योंकि तब तक ना तो कातिल एंडरसन जिंदा रहेगा और ना ही मौजूदा प्रभावित पीढ़ी।

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