Saturday, January 8, 2011

सुर्खियों से शुरुआत












सुर्खियों से शुरुआत
कुदरत का कहर जारी है
कहीं धरती उगल रही आग
कहीं बर्फबारी की दुश्वारी है।

जंगलों से निकल कर गजराज
बस्तियों में तबाही मचा रहे हैं
तेंदुआ भी हरियाली छोड़ कर
कंक्रीट के जंगलों में आ रहे हैं।

तपिश की तबाही
सर्दी का सितम भारी
बारिश से आई बाढ़
सूखे का संकट भी जारी।

तबाही का ये मंजर
कर रहा है इशारा
बदल जाओ दुनिया वालों
बदल जाएगा नजारा।

तुमने अपने हाथों ही तो
दिक्कतों का पौधा रोपा है
बबूल की खेती की है
कांटों की चुभन से रोता है।

कुदरत का मजाक उड़ाना
पड़ रहा भारी है
मौका है संभल जाओ
बेहतर करने की बारी है।

2 comments:

  1. "तबाही का ये मंजर
    कर रहा है इशारा
    बदल जाओ दुनिया वालों
    बदल जाएगा नजारा।"

    मानव को सचेत करती सुन्दर रचना
    आभार

    कृपया वर्ड वेरिफिकेशन की उबाऊ प्रक्रिया अपने डेशबोर्ड की सेटिंग में जाकर हटा दें. इससे प्रतिक्रिया देने में अनावश्यक परेशानी होती है.
    धन्यवाद

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