कुदरत का कहर जारी है
कहीं धरती उगल रही आग
कहीं बर्फबारी की दुश्वारी है।
जंगलों से निकल कर गजराज
बस्तियों में तबाही मचा रहे हैं
तेंदुआ भी हरियाली छोड़ कर
कंक्रीट के जंगलों में आ रहे हैं।
सर्दी का सितम भारी
बारिश से आई बाढ़
सूखे का संकट भी जारी।
तबाही का ये मंजर
कर रहा है इशारा
बदल जाओ दुनिया वालों
बदल जाएगा नजारा।
तुमने अपने हाथों ही तो
दिक्कतों का पौधा रोपा है
बबूल की खेती की है
कांटों की चुभन से रोता है।
कुदरत का मजाक उड़ाना
पड़ रहा भारी है
मौका है संभल जाओ
बेहतर करने की बारी है।
"तबाही का ये मंजर
ReplyDeleteकर रहा है इशारा
बदल जाओ दुनिया वालों
बदल जाएगा नजारा।"
मानव को सचेत करती सुन्दर रचना
आभार
कृपया वर्ड वेरिफिकेशन की उबाऊ प्रक्रिया अपने डेशबोर्ड की सेटिंग में जाकर हटा दें. इससे प्रतिक्रिया देने में अनावश्यक परेशानी होती है.
धन्यवाद
kırşehir
ReplyDeletekırıkkale
manisa
tokat
urfa
MCS