एक तिनका
और जुड़ गया
उसके आशियाने में
फुर्रर.. निकल गई
नए तिनके की
तलाश में
गौरय्या
लेनिन से अनजान है
तंत्र से अपरीचित है
उसे
पूंजीवाद की भी
जानकारी नहीं है
शायद इसीलिए
बेखौफ
लोकतांत्रिक अंदाज में
बटोरती है
तिनका-तिनका
जीती है सुराज में
शायद इसीलिए बेखौफ लोकतांत्रिक अंदाज में बटोरती है तिनका-तिनका जीती है सुराज में बस आदमी ही न जाने किस तलाश मे आपने स्वार्थ का दास बन कर जेने लगा है। पक्षियों से भी सीखता नही। अच्छी रचना। शुभकामनायें।
sundar rachna...
ReplyDeleteachchhe bhav....
बहुत ख़ूबसूरत और भावपूर्ण रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! बधाई!!
ReplyDeleteशायद इसीलिए
ReplyDeleteबेखौफ
लोकतांत्रिक अंदाज में
बटोरती है
तिनका-तिनका
जीती है सुराज में
बस आदमी ही न जाने किस तलाश मे आपने स्वार्थ का दास बन कर जेने लगा है। पक्षियों से भी सीखता नही। अच्छी रचना। शुभकामनायें।
nice,,,
ReplyDeleteआपका ब्लॉग पसंद आया....इस उम्मीद में की आगे भी ऐसे ही रचनाये पड़ने को मिलेंगी......आपको फॉलो कर रहा हूँ |
ReplyDeleteकभी फुर्सत मिले तो नाचीज़ की दहलीज़ पर भी आयें-