Wednesday, May 4, 2011

बेखौफ









एक तिनका
और जुड़ गया
उसके आशियाने में
फुर्रर.. निकल गई
नए तिनके की
तलाश में
गौरय्या
लेनिन से अनजान है
तंत्र से अपरीचित है
उसे
पूंजीवाद की  भी
जानकारी नहीं है
शायद इसीलिए
बेखौफ
लोकतांत्रिक अंदाज में
बटोरती है
तिनका-तिनका
जीती है सुराज में

5 comments:

  1. बहुत ख़ूबसूरत और भावपूर्ण रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! बधाई!!

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  2. शायद इसीलिए
    बेखौफ
    लोकतांत्रिक अंदाज में
    बटोरती है
    तिनका-तिनका
    जीती है सुराज में
    बस आदमी ही न जाने किस तलाश मे आपने स्वार्थ का दास बन कर जेने लगा है। पक्षियों से भी सीखता नही। अच्छी रचना। शुभकामनायें।

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  3. आपका ब्लॉग पसंद आया....इस उम्मीद में की आगे भी ऐसे ही रचनाये पड़ने को मिलेंगी......आपको फॉलो कर रहा हूँ |

    कभी फुर्सत मिले तो नाचीज़ की दहलीज़ पर भी आयें-

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